जब 2007 में राहुल गांधी कांग्रेस महासचिव चुने गए थे तब उन्हें परिवर्तन के प्रतीक के रूप में देखा गया था। उस वक्त उनका जिम्मा यह था कि कैसे राजनीति से वंशवाद, संरक्षणवाद और धनवाद को खत्म किया जाए। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि कांग्रेस से नामजदगी संस्कृति को समाप्त किया जाएगा। आज साढ़े तीन साल बाद राहुल के उन वादों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि भारतीय युवा कांग्रेस के लिए उन्होंने जो भी प्रयोग किए थे, वे लड़खड़ा रहे हैं। भारतीय युवा कांग्रेस ने बेशक युवा नेताओं की एक पीढ़ी राजनीति में दी है, लेकिन ये नेता आराम की राजनीति को ज्यादा तवज्जो देने वाले लगते हैं। आंदोलनकारी राजनीति से इनका कोई सरोकार नहीं। रही-सही कसर ये आपस में लड़-झगड़ कर पूरी कर रहे हैं।
राहुल गांधी की भारतीय युवा कांग्रेस को कुछ ऐसे भी समझा जा सकता है-
-पिछले महीने तमिलनाडु युवा कांग्रेस ने एक पदयात्रा निकाली। इस आयोजन में वाकया कुछ ऐसा हुआ कि युवा कांग्रेस के अध्यक्ष एम युवराज के सामने ही उपाध्यक्ष एस वरदराजन को थप्पड़ मारा गया और हाथापाई भी हुई। वरदराजन पर हमला युवा कांग्रेस के ही कुछ विरोधी कार्यकत्ताओं ने किया था। इससे आहत होकर आनन-फानन में राहुल गांधी ने तमिलनाडु कांग्रेस के आला नेताओं की एक बैठक दिल्ली में बुलाई। उन्हें निर्देश दिए गए कि लड़ाई-झगड़े और गुटबाजी से ऊपर उठ कर पार्टी के लिए काम किया जाए। बैठक समाप्त होते ही आधे से ज्यादा लोग केंद्रीय मंत्री जीके वासन के घर चले गए, जबकि बाकी लोग कांग्रेस के कुछ दिग्गजों से मिलने के लिए कूच कर गए।
-जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस की स्थिति यह है कि इसके सचिव शोएब लोन और उपाध्यक्ष आरएस पठानिया में आजकल कोई बातचीत नहीं है। घाटी में जब बवाल मचा हुआ था तब भी युवा कांग्रेस का इससे कोई लेना-देना नहीं था।
-बिहार में हाल में विधानसभा चुनाव हुए हैं। चुनाव अभियान से यहां के युवा कांग्रेसी नेताओं ने अपने को दूर रखा। चुनाव प्रचार में कोई दर्जन भर युवा कांग्रेसी नेता इसलिए भाग लिए क्योंकि उन्हें उम्मीदवार बनाया गया था। जिन्हें टिकट नहीं मिला वे तो चलते बने और पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान नजर नहीं आए।
-कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक केएस सुदर्शन की टिप्पणियों से बौखलाए कांग्रेसी सुदर्शन पर पिल पड़े। उनके खिलाफ देशभर में रैलियां कीं और नारे लगाए गए। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे आश्चर्यजनक यह रहा कि युवा कांग्रेस मूक बनी रही। न किसी तरह का विरोध, न रैली ओर न सुदर्शन के खिलाफ कोई गोलबंदी। ऐसी निष्क्रियता ने कांग्रेस पार्टी को अचंभे में डाल दिया।
-पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू 2008 में युवा कांग्रेस का चुनाव जीत कर अध्यक्ष बने। पंजाब की राजनीति में यह उनका पदार्पण था। कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव में उन्हें आनंदपुरसाहिब से चुनाव लड़ने को टिकट दे दिया गया, जबकि इस क्षेत्र में कई वर्षों तक वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी ने सेवादारी की थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में अपनी पूरी ताकत झोंकी, वहीं बिट्टू और अन्य युवा कांग्रेस नेता दिल्ली के सियासी गलियारों में अपनी पहचान बनाने में मशगूल रहे। दिसंबर 2010 में जब बिट्टू का कार्यकाल समाप्त होने को आया तो उन्होंने एक पदयात्रा निकाली।
पूर्व में युवा कांग्रेस को देख कर ऐसा लगा था कि वह उत्कृष्टता के प्रबंधन का पाठ पढ़ कर वैसे नेताओं को पुरस्कृत करेगी, जिन्होंने कांग्रेस की राजनीति में अपना उत्कृष्ठ योगदान दिया है। हालांकि कांग्रेस की बैठकों और प्रशिक्षण शिविरों में युवा नेताओं की अल्प उपस्थिति यह बयां कर रही है कि उन्हें इस बात से कोई संबंध नहीं कि क्षेत्र में कैसे उत्कृष्ठ योगदान देना है। कुछ राज्यों में हुई कुछ पदयात्रायों को छोड़ दें तो पता चलेगा कि राहुल गांधी ने जिन युवाओं को चुना उन्हें जमीनी राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं और उनका पूरा ध्यान इस पर होता है कि आखिर चुनावों में कैसे टिकट पाई जाए।
राहुल गांधी ने कांग्रेस की राजनीति से वंशवाद, संरक्षणवाद और धनवाद को हटाने का संकल्प लिया था। लेकिन इन तीनों कारकों ने युवा कांग्रेस के चुनावों में अपनी जड़े मजबूत बना लीं। इसे जानने के लिए छत्तीसगढ़ को ही मिसाल के तौर पर लें। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को वहां के युवा कांग्रेस चुनाव से बाहर रखा गया। जबकि ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ युवा कांग्रेस में जीत दर्ज कराने वालों ने ही खुद राहुल गांधी को बताया कि जीत के पीछे अमित जोगी का ही हाथ है और उन्होंने अमित के नेतृत्व क्षमता और गुणवत्ता की दाद दी थी।
अगर अन्य राज्यों की बात करें तो जिन लोगों को भी कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया वे या तो किसी प्रभावी राजनीतिक परिवार से आते हैं या फिर उन्हें किसी बड़े नेता का संरक्षण हासिल होता है। युवा सचिवों के बारे में ज्यादा जानने के लिए इन तथ्यों पर गौर किया जा सकता है- हरियाणा में चिरंजीवी राव वहां के वित्त मंत्री अजय सिंह यादव के पुत्र हैं। वे तमिलनाडु के जीके वासन युवराज के करीबी हैं और गुजरात में इंद्रविजय सिंह शंकर सिंह बाघेला के काफी नजदीक माने जाते हैं।
कांग्रेस में जहां तक नामजदगी संस्कृति के खात्मे की बात है तो राहुल ने खुद ही महाराष्ट्र के एक पूर्व मंत्री के बेटे राजीव सतव को भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना है। जबकि इस पद के लिए जो उम्र सीमा मान्य है, उससे वे कहीं ज्यादा उम्र के हैं। राहुल गांधी का ध्यान इस ओर था कि कांग्रेस को कैसे युवा नेताओं से परिपूर्ण किया जाए और भारतीय युवा कांग्रेस में एसेंबली और लोकसभा युवा सचिवों का पद बना कर चुनावों में पार्टी के टिकट दिए जाएं। हालांकि वर्तमान परिदृष्य में राज्यों में युवा कांग्रेस की जो स्थिति है, उससे यह स्पष्ट है कि 125 साल पुराने इस पार्टी के बुजुर्ग नेताओं पर निकट भविष्य में कोई खतरा आने वाला नहीं है।
- यह लेख एक वेबसाइट से लिया गया है जिसके मास्टर हेड पर भारतीय युवक कांग्रेस लिखा हुआ है. इसीलिये हमने अपने हेड लाइन मैं युवक कांग्रेस लिखा.
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- लेखक अजय गडकरी की प्रोफाइल देखें