पागल न तो राहुल गांधी हैं, न डी.पी. त्रिपाठी हैं और न ही प्रफुल्ल पटेल हैं। मूर्ख भी नहीं हैं ये। दोष राहुल गांधी का है कि उन्हें डी.पी. त्रिपाठी ने 'इटली की याद दिला दी। राहुल की मां सोनिया गांधी के विदेशी (इटली) मूल को मुद्दा बना कांग्रेस का त्याग करने वाले शरद पवार भले ही राजनीतिक सुविधा अथवा मजबूरी के कारण कांग्रेस के सहयोगी बन गए हों, किंतु उनके सीने का दर्द कम नहीं हुआ है। उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस के अधिकृत प्रवक्ता डी.पी. त्रिपाठी ने जब टिप्पणी की कि गठबंधन धर्म को समझने के लिए राहुल गांधी को कम से कम इटली पर तो नजर डाल लेनी चाहिए थी, तो वस्तुत: शरद पवार के दर्द को ही रेखांकित किया गया था। कांग्रेस छोडऩे और सन् 2004 में कांग्रेस नेतृत्व की संप्रग सरकार में शरद पवार के मंत्री बनने के बाद पहली बार उनकी पार्टी की ओर से इटली शब्द का उच्चारण किया गया। स्वयं को राजनीतिक रूप से परिपक्व घोषित कर चुके राहुल गांधी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे वस्तुत: अपरिपक्व ही हैं।
कमरतोड़ महंगाई और कीर्तिमान स्थापित करते भ्रष्टाचार के आरोपों से भयभीत कांग्रेस अब पूर्णत: बचाव की मुद्रा में आ गई है। कांग्रेस की ओर से अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी तर्क-कुतर्क देकर स्थिति संभालने का असफल प्रयास करते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की ओर से घोषित भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने सब गुडग़ोबर कर दिया। पता नहीं किस मूर्ख की सलाह पर उन्होंने टिप्पणी कर दी कि गठबंधन की मजबूरियों के कारण महंगाई बढ़ी है। यह समझ से परे है कि महंगाई का गठबंधन की राजनीति से क्या संबंध है। गठबंधन की मजबूरियां निश्चय ही नीति निर्धारण को प्रभावित करती रही हैं। किंतु खाद्य पदार्थों सहित अन्य वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि के कारण कुछ और ही होते हैं। 1974-75 में तो इंदिरा गांधी नेतृत्व की कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी। क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि तब खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान छूने लगी थी। महंगाई के लिए गठबंधन की राजनीति को जिम्मेदार बताने वाले राहुल गांधी को गठबंधन धर्म की परिभाषा और इससे जुड़े उद्धरण की जानकारी लेनी चाहिए। जब भाजपा के अटल बिहारी के नेतृत्व में लगभग 2 दर्जन दलों की गठबंधन सरकार बनी थी, तब स्वयं प्रधानमंत्री वाजपेयी ने देश को बता दिया था कि सरकार जिस एजेंडे को लेकर चल रही है, वह अकेले भाजपा का एजेंडा नहीं है बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का एजेंडा है। संविधान की धारा 370 को हटाने और राम मंदिर निर्माण की मांग पर उन्होंने ऐसा नीतिगत स्पष्टीकरण दिया था। लेकिन राजनीतिक रूप से घोर अपरिपक्व राहुल गांधी चूंकि चाटुकार सलाहकारों से घिरे हैं, जब भी मुंह खोलते हैं, नई-नई दुर्घटनाओं से उनका सामना हो जाता है। विशेषकर जब भी वे राजनीतिक रूप से गंभीर होने का स्वांग रचते हैं, उन्हें मुंह की खानी पड़ती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी के दर्शन से अनजान राहुल गांधी की ताजा कवायद ने उनकी मां सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे की दबी चिंगारी को ही हवा दे डाली। जिस युवा वर्ग के बलबूते राहुल सत्ता का नेतृत्व हथियाना चाहते हैं, वह युवा वर्ग किसी व्यक्तित्व के करिश्मा या स्टंट से प्रभावित नहीं होता। मैं यहां राहुल गांधी को हतोत्साहित करना नहीं चाहता। उनका श्रम, उनका उत्साह सराहनीय है। किंतु, उन्हें यह समझना होगा कि जिस बारात का नेतृत्व वे करना चाहते हैं, फिलहाल उसमें कतिपय अपवाद छोड़ चोरों की भरमार है। कोई आश्चर्य नहीं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली केंद्र सरकार है, जिस पर प्राय: हर दिन भ्रष्टाचार में नए-नए आरोप लग रहे हैं। अत्यंत ही शातिर यह जमात अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए (देश हित की कीमत पर ही सही) बैंड-बाजे, रोशनी, आतिशबाजी की व्यवस्था कर एक ऐसे दूल्हे की तलाश में रहती है जो बारात की शोभा बढ़ा सके। बेनकाब ये बाराती नेहरू-गांधी परिवार के सामने नतमस्तक हो चरणवंदना करते हैं तो इस जरूरत की पूर्ति के लिए ही। अब फैसला राहुल गांधी करें कि चोरों की इस बारात का दूल्हा वे बनना चाहेंगे!
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लेखक का परिचय: संस्थापक एवं प्रथम संपादक - दैनिक 'प्रभात खबर' रांची (झारखंड) संपादक - दैनिक 'लोकमत समाचार' नागपुर/औरंगाबाद/अकोला प्रधान संपादक दैनिक 'जनवाद' (मराठी), नागपुर संपादक- दैनिक 'नवभारत' भोपाल/नागपुर प्रधान संपादक - साप्ताहिक 'सीनियर इंडिया' व न्यूज चैनल 'एस-1' संपादक - न्यूज चैनल 'इंडिया न्यूज' कुछ अन्य विगत - संपादक - 'पाक्षिक धारा' पटना (बिहार) संपादक - सा. 'स्वतंत्रता' पटना (बिहार) प्रधान संपादक दैनिक 'राष्ट्रप्रकाश' एवं समूह संपादक- मराठी 'दैनिक देशोन्नती' (नागपुर/अकोला सहित 15 संस्करण) संप्रति - संप्रति -प्रधान संपादक 'दैनिक 1857'
- यह लेख श्री विनोद के ब्लॉग चीरफाड़ से लिया गया.