This is default featured slide 1 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 2 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 3 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 4 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 5 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

Tuesday, January 11, 2011

राहुल गांधी फेल हो गए.

एक कहानी है. एक गांव में दो पड़ोसियों के बीच झगड़ा चल रहा था. दोनों एक-दूसरे को तबाह करने में दिन-रात लगे रहते थे. उनमें से एक को अचानक एक आइडिया आया. उसने अपनी एक आंख फोड़वा ली. हर दिन वह सुबह-सुबह अपने विरोधी के सामने खड़ा हो जाया करता था. जिसने अपनी आंख फोड़वा ली, उसे यह आइडिया आया कि क्यों दिन भर पड़ोसी के पीछे लगे रहें, इससे अच्छा तो यह है कि एक आंख फोड़ लो और सुबह-सुबह उसके सामने चले जाओ. काने को देखने से दिन वैसे ही खराब हो जाएगा. कांग्रेस पार्टी ने बिहार चुनाव में यही काम किया है. लालू यादव को सबक सिखाने की जिद ने कांग्रेस पार्टी को अंधा बना दिया. पार्टी ने बिहार में ऐसी रणनीति बनाई, जिससे पूरा विपक्ष ही खंड-खंड हो गया.
सवाल यह है कि राहुल ने बिहार में ऐसी रणनीति क्यों अपनाई. दरअसल राहुल गांधी के लिए बिहार चुनाव एक प्रयोगशाला है, उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनना है, युवाओं का सर्वमान्य नेता बनना है. इसी मायने में बिहार चुनाव राहुल गांधी का इम्तहान है. बिहार के चुनाव में यह भी फैसला होना है कि राहुल गांधी का करिश्मा चुनाव पर असर डालता है या नहीं? राहुल गांधी में संगठन का पुनर्निर्माण करने की काबिलियत है या नहीं? बीस साल पहले कांग्रेस बिहार की सबसे मजबूत और ताक़तवर पार्टी हुआ करती थी. राहुल क्या कांग्रेस पार्टी के पुराने दिन लौटा पाएंगे? राहुल गांधी और उनके सलाहकारों के लिए यही चुनौती है. राहुल गांधी ने मुसलमानों और युवाओं के ज़रिए इस काम को अंजाम देने की कोशिश की है. ऐसा ही कुछ राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में करना है. अगर बिहार का प्रयोग सफल रहता है तो राहुल गांधी के लिए पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने का रास्ता सा़फ हो जाएगा, लेकिन राहुल गांधी अपनी पहली परीक्षा में फेल हो गए. राहुल गांधी नौजवानों को राजनीति में सामने लाने की बात करते हैं. भारत के युवाओं का सर्वमान्य नेता बनना उनका सपना है. बिहार चुनाव उनके लिए एक मौक़ा था, जब वह ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को उम्मीदवार बना सकते थे. अगर राहुल गांधी बिहार में 25-40 वर्ष की आयु के 60 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिलवाने में कामयाब होते तो यह माना जा सकता था कि राहुल गांधी जो कहते हैं, वही करते हैं, लेकिन बिहार चुनाव में वह एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस से दस से ज़्यादा उम्मीदवारों को टिकट नहीं दे सके. इसका मतलब यह है कि कांग्रेस पार्टी युवाओं से समर्थन तो चाहती है, लेकिन उनके हाथ नेतृत्व देना नहीं चाहती. कांग्रेस की योजना बिहार में असफल होती दिखाई दे रही है. 
चुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष अनिल शर्मा थे. उन्होंने पार्टी को खड़ा करने में बड़ा योगदान किया. जो काम लालू यादव और रामविलास पासवान नहीं कर सके, वह काम अनिल शर्मा ने किया. उन्होंने सबसे पहले नीतीश कुमार के खिलाफ माहौल बनाया. पूरे राज्य का दौरा कर पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं को एकजुट किया, लेकिन पार्टी ने उन्हें बेइज़्ज़त करके अध्यक्ष पद से हटा दिया. दरअसल, राहुल गांधी के सलाहकार पिछले छह महीने से बिहार में हर तरह के प्रयोग को अंजाम देने में लगे थे. राहुल गांधी कहां जाएंगे, कहां प्रेस कांफ्रेंस करेंगे, कैसे लोगों को टिकट दिया जाएगा, किन्हें संगठन की ज़िम्मेदारी दी जाएगी आदि सब कुछ उनके सलाहकार राहुल गांधी के नेतृत्व के नाम पर कर रहे थे. राहुल गांधी ने भी चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी. 
बिहार चुनाव अपने आ़खिरी चरण में है. इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हर पार्टी ने अपने-अपने हिसाब से जनता को मूर्ख बनाने के हर दांव खेले. कांग्रेस पार्टी इस खेल में सबसे आगे रही. अब चुनाव के नतीजे ही यह बताएंगे कि जनता इनके झांसे में आई या नहीं. अ़फसोस की बात यह है कि बिहार चुनाव के दौरान जनता की समस्याएं और उनसे जुड़े सवाल चुनाव का मुद्दा नहीं बन सके. विपक्ष ने और भी निराश किया. सरकार की कमियों को मुद्दा बनाने के बजाय सबने नीतीश कुमार को ही निशाने पर ले लिया. विपक्षी दलों की कृपा से नीतीश कुमार चुनाव के केंद्र में आ गए. यही नीतीश कुमार की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह है. इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की. कांग्रेस ने इस चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया. बिहार कांग्रेस के एक सचिव सागर रायका और पार्टी की यूथ विंग के अध्यक्ष ललन कुमार को पुलिस ने साढ़े छह लाख रुपये के साथ गिरफ़्तार किया. इन पर सोनिया गांधी की रैली में भीड़ इकट्ठा करने के लिए पैसे बांटने का आरोप है. सोनिया गांधी की रैली में शामिल होने के लिए पैसे बांटने के आरोप में कांग्रेस के छह अन्य कार्यकर्ता भी गिरफ्तार हुए. पार्टी ने खुद को एनडीए को चुनौती देने वाली मुख्य पार्टी बनाने में साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ लगा दिया. राहुल गांधी ने अपनी सारी ताक़त झोंक दी. उनकी रैलियों में लोग तो आए, लेकिन कांग्रेस पार्टी नीतीश कुमार को चुनौती देने में नाकाम रही. शुरुआत से ही बिहार चुनाव में कांग्रेस की वजह से काफी कन्फ्यूजन फैला. राहुल गांधी के सलाहकारों ने उन्हें यह समझा दिया कि नीतीश कुमार ने बिहार में अच्छा काम किया है. उनकी तारी़फ करने से राहुल गांधी को लोग सच बोलने वाला नेता समझेंगे. इसके बाद वह जो भी बोलेंगे, लोग उनकी बातों पर विश्वास करेंगे. 
राहुल बिहार गए और उन्होंने कह दिया कि नीतीश कुमार बिहार का विकास कर रहे हैं. जिसका अर्थ यह निकला कि नीतीश कुमार से पहले लालू यादव की जो सरकार  थी, उसने विकास का काम नहीं किया. राहुल गांधी ने एक ही झटके में विपक्ष को कमज़ोर कर दिया. राहुल गांधी के ऐसे बयानों से लालू यादव और रामविलास पासवान का नाराज़ होना स्वाभाविक था, क्योंकि इस बयान से वे दोनों बैकफुट पर आ गए. इसके बाद खबर यह भी आई कि कांग्रेस पार्टी ने नीतीश कुमार की तऱफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. यह संदेश दिया गया कि चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी नीतीश की सरकार को समर्थन दे सकती है. नीतीश कुमार ने राहुल के बयान के बदले उन्हें धन्यवाद कहा, लेकिन कांग्रेस के साथ कोई भी तालमेल करने से सार्वजनिक तौर पर मना कर दिया. फिर कांग्रेस ने लालू यादव और रामविलास पासवान के बीच भ्रम फैलाने की कोशिश की. कांग्रेस की तऱफ से यह बात फैलाई गई कि चुनाव परिणामों के बाद यदि बिहार में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति सामने आती है  तो कांग्रेस लालू यादव की जगह रामविलास पासवान को समर्थन देगी. पहले राहुल गांधी ने नीतीश की तारी़फ की, फिर चुनाव प्रचार के दौरान उन पर केंद्र की योजनाओं को सही ढंग से लागू न करने का आरोप लगाया. कांग्रेस ने बीच-बीच में गठबंधन और रणनीति को लेकर अफवाह फैलाई. राहुल गांधी के सलाहकार शायद बिहार से वाक़ि़फ नहीं हैं और शायद इसलिए ऐसी ग़लती हो गई. बिहार की जनता राजनीतिक तौर पर काफी परिपक्व है, वह नेताओं के बहकावे में नहीं फंसती. बयानबाज़ी का असर बिहार की जनता पर नहीं होता. यही वजह है कि कांग्रेस का चुनावी अभियान बिहार में मज़ाक बन गया. 
कांग्रेस ने मुसलमानों को ठगने के लिए एक मुस्लिम नेता को बिहार प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया. क्या कांग्रेस पार्टी को यह लगा कि स़िर्फ अध्यक्ष बना देने से मुसलमान उनके पास वापस आ जाएंगे, उनका वोट मिल जाएगा? मुसलमानों के साथ कांग्रेस ने जो कलाबाज़ी की है, उसका इतिहास तो अनंत है. क्या कांग्रेस पार्टी को यह लगता है कि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र कमीशन रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई किए बिना मुसलमानों को धो़खा दिया जा सकता है? कांग्रेस पार्टी जो कहती है और जो करती है, उसमें ज़मीन-आसमान का ़फर्क़ होता है. लगता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने ही बयान को भूल गए हैं. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद यह कहकर राजनीतिक गलियारों में शाबाशी बटोरी थी कि सरकारी संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का ज़्यादा हक़ है. यूपीए की सरकार बने अब सात साल होने वाले हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के विकास से जुड़ा एक भी क़ानून नहीं लाया गया है. चुनाव से ठीक पहले बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आ गया. इस फैसले पर सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी की चुप्पी ने मुसलमानों को कांग्रेस से दूर कर दिया. कांग्रेस ने बिहार में 48 मुसलमानों को मैदान में उतार दिया. कांग्रेस की इस बात के लिए तारी़फ होनी चाहिए कि इसने इतने ज़्यादा मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिए, लेकिन समझने की बात यह है कि क्या इन उम्मीदवारों को इसलिए टिकट दिया गया कि ये जीतने वाले उम्मीदवार हैं. या फिर लालू यादव का नुक़सान करने के लिहाज़ से यह रणनीति बनाई गई है. चुनाव परिणाम से यह साबित हो जाएगा कि कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को टिकट देने के फैसले से किसे नुक़सान हुआ और इसका फायदा किसे हुआ. कांग्रेस पार्टी ने बिहार में जो काम किया, वही काम वह पश्चिम बंगाल में भी दोहराने की तैयारी में है. उससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में स़िर्फ ममता बनर्जी ही हैं, जो लेफ्ट फ्रंट की सरकार को हराने की ताक़त रखती हैं. लोकसभा, पंचायतों और नगरपालिकाओं में तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत हुई है. राहुल गांधी ने जब यह कहा कि कांग्रेस पार्टी उन्हीं शर्तों पर तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन करेगी, जो सम्मानजनक हों. इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस पार्टी को अगर उसके मन मुताबिक़ सीटें नहीं मिलीं तो वह बिहार की तरह अकेले चुनाव लड़ेगी. चुनाव त्रिकोणीय हो जाएगा और इसका फायदा लेफ्ट फ्रंट को मिलेगा. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस पर यह आरोप लगना निश्चित है कि पार्टी पश्चिम बंगाल में बदलाव नहीं चाहती है. बिहार चुनाव के संदर्भ में राहुल गांधी की राजनीति पर ग़ौर करना ज़रूरी है. मामला किसानों का हो या फिर उड़ीसा के नियमगिरि के आदिवासियों का, राहुल गांधी के नज़रिए और केंद्र सरकार की नीतियों में मतभेद है. राहुल गांधी ग़रीबों, किसानों और आदिवासियों के साथ नज़र आते हैं, लेकिन सरकार उनकी विचारधारा के विपरीत चल रही है. राहुल गांधी भारत के साथ खड़े हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार इंडिया के साथ नज़र आती है. राहुल गांधी की कथनी और केंद्र सरकार की करनी में ज़मीन-आसमान का अंतर है. सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी बिहार की जनता को यह विश्वास दिला पाएंगे कि बुनियादी सवालों पर वह जो कह रहे हैं, सही है? वह जिस सिद्धांत को लेकर चल रहे हैं, वह सही है? वैसे राहुल गांधी की इस बात के लिए तारीफ होनी चाहिए कि जब वह आदिवासियों, मज़दूरों और ग़रीबों के मुद्दे पर बोलते हैं तो एक भावी प्रधानमंत्री नज़र आते हैं. उनके बयानों को सुनकर अच्छा भी लगता है, लेकिन डर भी लगता है. राहुल गांधी कुछ मुद्दों पर ऐसी राय रखते हैं, जिसका विरोध देश ही नहीं, बल्कि विदेशों की बड़ी-बड़ी शक्तियां करती हैं. देखना है कि राहुल गांधी के विचार, उनकी राजनीति सरकारी योजनाओं में कब तब्दील होती है. 
बिहार चुनाव में जातीय समीकरण, अपराधियों और परिवारवाद का बोलबाला रहा. नेताओं ने जनता की समस्याओं के बजाय अपने निजी स्वार्थों पर ज़्यादा ध्यान दिया. नीतीश कुमार ने भी जनता को मूर्ख बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह नरेंद्र मोदी का विरोध करने का भ्रम भी फैलाते रहे और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन भी सलामत रहा. उन्होंने विकास के आंकड़ों की कलाबाज़ी दिखाई. सड़क बनाने को सुशासन का नाम देकर जनता को बेकारी, अशिक्षा और ग़रीबी जैसे मुद्दों से दूर रखने में वह कामयाब रहे. भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार की बी टीम बनकर अपने धार्मिक और विवादित मुद्दों पर पर्दा डालकर लोगों को गुमराह किया. वामपंथी पार्टियों की दुविधा यह रही कि पार्टी दिल्ली के दफ्तर से बाहर ही नहीं निकली. बिहार में ग़रीबी, अशिक्षा एवं बेरोज़गारी जैसी समस्याएं हैं, लेकिन वामपंथी दलों ने भी निराश ही किया. जनता के लिए उन्होंने सड़क पर उतरने की ज़हमत नहीं उठाई. लालू यादव के खिला़फ सबसे बड़ा इल्ज़ाम यह है कि वह विकास विरोधी हैं. उनकी इसी छवि का नुकसान रामविलास पासवान को हो रहा है. मायावती ने ज़्यादा से ज़्यादा उम्मीदवारों को खड़ा कर चुनाव को बहुकोणीय बना दिया. लालू यादव और रामविलास पासवान ने अगर ग़रीबों, दलितों, मज़दूरों, किसानों और मुसलमानों के विकास को मुद्दा बनाया होता तो चुनाव में बहस का मुद्दा ही अलग होता. कांग्रेस ने लालू यादव और रामविलास पासवान से हाथ न मिलाकर विपक्ष के वोटों का बंटवारा कर दिया. 
  • यह लेख चौथी दुनिया में प्रकाशित हुआ एवं विकी पीडिया  ने लिफ्ट किया.