बेरोजगारी की समस्या दिनों दिन विकट होती जा रही है। सोनिया गांधी बतौर कांग्रेस आलाकमान 25 जुलाई को एक अनूठा कीर्तिमान भले ही दर्ज कर लें किन्तु चुनावी घोषणापत्रा की उन्होंने कभी सुध नहीं ली। माना कि उन्होंने बड़ी सूझबूझ से मृत हो चुकी कांग्रेस पार्टी को पुनः जीवित कर दिखाया।
गरीबों और बेरोजगारों को उनसे काफी उम्मीदें थी किंतु उन तमाम उम्मीदों पर पानी फिर चुका है। एक वर्ष में तीन बार यदि बगैर किसी ठोस कारण के मिट्टी तेल, डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए गए हैं तो उससे स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें सामान्य जनता की तनिक भी फिक्र नहीं है।
शिक्षा का निजीकरण हो रहा है। शिक्षा का बाजारीकरण बड़ी तेजी से हो रहा है। शैक्षणिक संस्थानों के बहाने राजनीतिज्ञ कीमती जमीन हड़प रहे हैं और अपना साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। शिक्षा के स्तर को सुधारने के प्रयास ईमानदारीपूर्वक होने चाहिए किंतु नहीं हो रहे हैं। रोजगार प्रदान करने वाली शिक्षा के बगैर भारत को महाशक्ति बनाने का सपना देखना सिवाए बेईमानी के और कुछ नहीं कहा जाएगा।
पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई और बढ़ेगी। खाद्य वस्तुओं के दाम वैसे ही बेतहाशा तेज गति से बढ़ चुके हैं और उनके घटने की संभावनाएं काफी क्षीण हैं। बिजली महंगी, बस भाड़ा महंगा, ट्रक भाड़ा महंगा, दवाएं महंगी, शिक्षा महंगी और रोजगार के अवसर काफी सीमित है।
गरीबी अमीरी के बीच की खाई गहराती जा रही है। आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ रही है जो देश के लिए घातक सिद् हो सकती है। गरीब और बेरोजगार युवाओं की तनिक भी फिक्र न करना स्पष्ट दर्शाता है कि सरकार पूंजीपतियों के हाथ का खिलौना बन चुकी है। पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ही सारे नियम, सारी योजनाएं बन रही हैं।
डा॰ मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्रा से यदि उनकी अपनी सरकार लाभ उठाने में पूरी तरह असमर्थ है तो यह सोनिया गांधी की हार ही है। सोनिया गांधी राहुल गांधी को प्रधानमंत्राी पद पर आसीन भी करना चाहती हैं। पूरी तरह से बिगड़ी हुई आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को पटरी पर लाना तब और भी कठिन हो जाएगा। राहुल गांधी प्रधानमंत्राी तो आसानी से बन जायेंगे किंतु सफल प्रधानमंत्राी हो भी पायेंगे, यह संदेहास्पद होता जा रहा है।
सोनिया गांधी के हाथों में रिमोट है। उसके बावजूद उनके अपने नेता सरकार विरोधी वक्तव्य देने पर बाध्य हो रहे हैं। मतलब साफ है कि सोनिया गांधी भी चाटुकारों से उसी तरह घिर चुकी हैं जैसे राजीव गांधी घिर गए थे। यही वजह है तीन-चैथाई से अधिक बहुमत प्राप्त करने वाला प्रधानमंत्राी पार्टी को न तो मजबूती प्रदान कर पाया, न ही पार्टी में बैठे उन लोगों को बाहर कर पाया जिनकी काली करतूतों से पार्टी बदनाम हुई।
बेरोजगारी की समस्या काफी गंभीर है। जरूरत है इसे पूरी गंभीरता से लेने की। पढ़ाई दिनों-दिन कठिन होती जा रही है। महंगी भी। पालक लाखों रूपया निवेश कर रहे हैं, इसी उम्मीद के साथ कि बच्चों का भविष्य उज्जवल हो, उन्हें शानदार कैरियर स्थापित करने के देश में ही सुअवसर मिलें। आज जजों की कमी है, डाक्टरों की कमी है। शिक्षकों की कमी है। सरकारी संस्थानों की भी कमी है।
सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे कर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की निरंतर कोशिश कर रही है। लाखों विद्यार्थी निजी संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर इंजीनियरिंग कर रहे हैं। पांच वर्ष बाद लाखों युवा इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री लिए कैम्पस सिलेक्शन की बाट जोहेंगे। स्थिति डांवाडोल है क्योंकि लाखों इंजीनियर विगत कई वर्षों से हाथों में डिग्रियां लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं।
लेखक कनिष्क कश्यप पेशे से पत्रकार है. गत पांच वर्षो से विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक मंचो पर उपस्थित रहे. राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बोध आपमें नैसर्गिक रूप से विद्धमान है. दिल्ली रंगमंच जगत में अभिनय,लेखन और निर्देशन के अलावा आप कवि और मंच संचालक के रूप में भी जाने जाते हैं. आपसे संपर्क करने का पता है. ई-मेल –greatkanishka@gmail.com