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Thursday, June 9, 2011

कहां गायब हो गए कांग्रेस के युवराज?

धर्मेद्र केशरी
नई दिल्ली
कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के युवराज और युवाओं के हिमायती राहुल गांधी आधी रात के बाद भट्टा परसौल गांव पहुंचे थे। राहुल के मुताबिक वहां वो किसानों के हक की लड़ाई लड़ने गए थे। वो भी तब, जब शायद उस समय उसकी कोई जरूरत नहीं थी। उनके जाने के बाद बहुत हंगामा हुआ और आधी रात की नौटंकी हिट रही । उत्तर प्रदेश सरकार ने जब उन्हें गिरफ्तार करके नोएडा की सीमा से बाहर भेज दिया तो खूब हो-हंगामा हुआ। 
कुछ दिन तक तो कांग्रेसी माया सरकार के खिलाफ लोकतंत्र की दुहाई देते हुए सड़कों पर नजर आए। इतना बवाल काटने का मतलब नहीं समझ में आया। भूमि अधिग्रहण की नीति केंद्र सरकार को तैयार करनी है और राहुल चाहते तो माया को घेरने के बजाय केंद्र सरकार पर दबाव बनाते। राहुल भट्टा पारसौल जाकर राजनीति की रोटी सेंकने की बजाय प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को किसानों की परेशानी से अवगत कराते और भूमि अधिग्रहण की नीति बदलने पर विचार करने के लिए कहते तो उनकी मंशा पर कोई सवाल ही नहीं खड़ा करता, पर उन्होंने ऐसा बिलकुल नहीं किया। राहुल गांधी किसानों का दर्द बांटने तो पहुंचे, पर ग्रामीणों के हमले में मारे जाने वाले पुलिसकर्मी भी तो इंसान ही थे। क्या उन्हें भी मरहम की जरूरत नहीं थी? क्या उन के परिवार वालों को बड़ी हानि नहीं हुई थी? बात तो तब बनती जब राहुल उन मृतक पुलिसवालों के परिवार के पास जाकर भी सांत्वना प्रकट करते। 
शनिवार देर रात केंद्र सरकार के इशारे पर पुलिस ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में जो तांडव मचाया वह तो पूरी तरह से लोकतंत्र की हत्या है और अब कांग्रेस के युवराज कहां गायब हो गए? अब वो लोकतंत्र की दुहाई क्यों नहीं दे रहे? माया सरकार ने तो राहुल के साथ कुछ भी नहीं किया और न ही उनकी पार्टी के लोगों को कोई हानि पहुंचाई थी, लेकिन उनकी पार्टी की सरकार ने रामलीला मैदान में डटे देशवासियों के साथ अमानवीयता की हद को ही पार कर दिया। अब राहुल कोई प्रतिक्रया क्यों नहीं देते हैं? क्या रामलीला मैदान में जुटी भीड़ से उनका कोई वास्ता नहीं है? क्या उनके अपने लोगों की कोई कैटेगरी है। राहुल पहले ये तय कर लें कि उनके लोग क्या सिर्फ वही हैं, जो कांग्रेस को वोट देते हैं? यह दुर्भाग्य की बात ही है कि राहुल मुद्दों से तो जुड़े, लेकिन उन मुद्दों से जो ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं। वह कलावती के घर खाना खाने जाते हैं और बाइक पर बैठकर भट्टा पारसौल ही पहुंचना जानते हैं। आखिर वो जन लोकपाल बिल और काले धन के मामले में खुलकर सामने क्यों नहीं आते? सिर्फ इसलिए, क्योंकि उनकी सरकार पर ये दोनों मुद्दे आफत की तरह है। राहुल अगर इन मुद्दों पर भी अपना पूरा समर्थन देते तो देश की जनता यह समझती कि वास्तव में वह भी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की कल्पना करते हैं और पूरी ईमानदारी से बिना पार्टी और आलोचना की फिक्र किए उसके लिए लड़ाई भी लड़ने को तैयार हैं, पर कांग्रेस का यह भविष्य खामोश है। राहुल कहते हैं कि वो युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और चाहते हैं कि और भी युवा राजनीति में आएं, पर शनिवार की रात रामलीला मैदान में जो कुछ भी हुआ उसे देखकर युवा सियासत के दलदल से दूर रहना ही बेहतर समङोंगे। आखिर युवा राजनीति में क्यों आएंगे? युवा बदलाव करने की नीयत से आएंगे और जब बदलाव घाघ नेताओं को रास नहीं आएगी तो वो ऐसे ही तिकड़मों से लोकतंत्र और राजनीति को शर्मशार करते रहेंगे, जसा केंद्र सरकार के वयोवृद्ध नेताओं ने रामलीला मैदान में किया। खामोश राहुल किन तर्को के साथ युवाओं को अपने साथ जोड़ेंगे? राहुल का इन दोनों मुद्दों से न जुड़ना और रामलीला मैदान में जो कुछ भी हुआ उस पर उनका चुप रहना सिर्फ कांग्रेस की साख पर ही बट्टा नहीं लगाता, बल्कि राहुल के राजनीतिक चरित्र और भविष्य पर भी सवाल खड़ा करता है कि आखिर राहुल किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं? साफ-सुथरी बदलाव वाली या यूं ही कभी न बदलने वाली नीतियों के साथ।