बंबई उच्च न्यायालय ने महात्मा गाँधी को राजद्रोही करार दिया. 13 जनवरी १९२३ को हुए एक फैसले मैं यही लिखा हुआ है. आरोप साबित होने के बाद वर्ष 1923 में ही महात्मा गांधी का वकालत करने का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। बंबई उच्च न्यायालय के निर्माण के इतिहास से जुड़ी एक किताब में खुलासा हुआ है कि तत्कालीन सरकार के आदेश के बाद सात न्यायाधीशों वाली पीठ ने वर्ष 1923 में गांधी जी का लाइसेंस रद्द कर दिया था।
महात्मा गांधी पर चले मुकदमे के रिकार्ड वाली पुस्तक के एक अंश के अनुसार राष्ट्रपिता को उन लेखों के लिए दोषी ठहाराया गया था जिसमें उन्होंने अंग्रेज सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जताई थी और उसे उखाड़ फेंकने की बात कही थी।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सर नार्मन क्रेनस्टाउन मैक्लाड की अध्यक्षता वाली पीठ के हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया है कि सरकार से मिले 13 जनवरी 1923 के पत्र में इनर टेंपल की पीठ का आदेश भेजा गया है जिसमें बंदी एमके गांधी के नाम को वकीलों की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया है।