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Sunday, June 19, 2011

बिना परीक्षा कैसे पास हो सकते हैं राहुल गाँधी

अजय मोहन
दिग्विजय सिंह जी देश की आधी से ज्‍यादा जनता आपकी इस बात से सहमत नहीं है। पूछिए क्‍यों? वो इसलिए क्‍योंकि जो युवराज अपनी युवा कांग्रेस को बांधने में कामयाब नहीं हो सका, वो देश को बांध कर क्‍या चलेगा। राहुल गांधी पढ़े लिखे नेता हैं, इसमें कोई शक नहीं। उनमें अच्‍छे नेतृत्‍व की क्षमता है, इसमें भी कोई शक नहीं उन्‍होंने कांग्रेस को नई राह दिखाई यह भी सर्वविदित है, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लायक बात कहना अभी जल्‍दबाजी होगी। सच इस तर्क को सिद्ध करने के लिए हम देश की राजनीति में नहीं कूदेंगे, हम कांग्रेस की सीमाओं में रहकर ही बात करें तो राहुल गांधी अब तक पूरी तरह असफल रहे हैं।

पांच साल पहले कांग्रेस ने देश के युवाओं को खुस से जोड़ने का संकल्‍प लिया, जिसके लिये युवक कांग्रेस का नाम बदलकर युवा कांग्रेस कर दिया गया और उसकी बागडोर युवराज को थमा दी गई। राहुल गांधी ने आते ही राजनीति का टैलेंट हंट चलाया और देश के कोने-कोने से एक से एक अच्‍छे युवा नेताओं का चयन किया। अगर उस टैलेंट के हाथ में युवा कांग्रेस की इकाईयों की बागडोर थमा दी गई होती, तो आज युवा कांग्रेस देश का सबसे बड़ा और मजबूत संगठन होता, लेकिन राहुल ने ऐसा नहीं किया।
राहुल ने युवाओं के इस संगठन में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव कराये और हर राज्‍य के प्रत्‍येक जोन के जिलों, कसबों व गांवों में चुनाव कराये और युवा कांग्रेस की नई पीड़ी खड़ी की। राहुल का यह एक्‍सपेरिमेंट पहले साल तो कामयाब रहा, लेकिन दूसरे साल से इस प्रथा से संगठन में फूट पड़नी शुरू हो गई। एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने की होड़ में कार्यकर्ता एक दूसरे के दुश्‍मन बन बैठे हैं।
इसी के चलते उत्‍तर प्रदेश के मध्‍य जोन का अध्‍यक्ष पद पिछले साल करीब छह महीने तक खाली पड़ा रहा, क्‍योंकि अध्‍यक्ष निष्‍कासित थे। हालांकि अब उनकी बहाली हो गई है। इसी तरह उत्‍तर प्रदेश के पूवी व पश्चिमी जोन में भी युवा कांग्रेस के नेता एक दूसरे के दुश्‍मन बनते दिख रहे हैं।
यही कारण थे कि बिहार विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी युवाओं के वोट बटोरने में फेल हो गये। अगले साल यानी 2012 में उत्‍तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। राहुल जी हर हफ्ते महीने राज्‍य के चक्‍कर काट रहे हैं, लेकिन अभी भी उन्‍हें युवा इकाई की फिक्र नहीं है। वो इस समय विधानसभा चुनाव स्‍तर के नेताओं को खोजने में जुटे हुए हैं, जो चुनाव में खड़े होंगे। राहुल जी एक बात तय है, अगर विधानसभा चुनाव तक आपकी युवा कांग्रेस में एकजुटता नहीं आयी, तो यह चुनाव भी हारना तय है।
बात अगर देश की राजनीति की करें तो राहुल गांधी ने अब तक एक भी मंत्रालय का प्रभार नहीं संभाला है, तो प्रधानमंत्री पद कैसे संभालेंगे। यही नहीं अभी तक राहुल गांधी ने भट्टा परसौल जैसे कई आंदोलनों की शुरुआत की है, लेकिन किसी का अंत नहीं कर सके। राजनीति में अगर राहुल को वाकई में प्रधानमंत्री बनना है तो उन्‍हें अवसरवादी राजनीति छोड़नी होगी। खैर ऐसे कई उदाहरण हैं, तो राहुल को प्रधानमंत्री बनने से रोकते हैं, लेकिन वे सभी उदाहरण तब फेल हो जायेंगे, जब परिवारवाद के सहारे आगे बढ़ रहा गांधी परिवार अपने लाडले को बिना किसी परीक्षा के पास कर देगा और पीएम का ताज पहना देगा।
अजय मोहन देट्स हिंदी वेबपोर्टल के नियमित लेखक हैं. उनके इस लेख को  देट्स हिंदी पर पढने के लिए क्लिक करें.