दरअसल राहुल के चंपुओं की नींद उड़ी रहती है, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी है कि राहुल को बड़ा बनाने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहिए। इनके करीबियों को लगा कि दिल्ली से सटे गांव भट्टा परसौल में किसान इस समय आग बबूला हैं, यहां राहुल को फिट किया जा सकता है। बस योजना बनी कि भट्टा गांव जाना है, एसपीजी ने चोर रास्ते का मुआयना किया और अगले दिन राहुल को बाइक से लेकर गांव पहुंच गए। इधर चंपुओं ने मीडिया में खबर उड़ाई कि राहुल यूपी पुलिस की आंख में धूल झोंक कर गांव पहुंचे। खैर ये बात सही है कि और दलों के नेता वहां नहीं पहुंच पाए जबकि राहुल पहुंच गए।
आइये अब मुद्दे की बात करते हैं, राहुल कहते हैं कि हम इस मसले पर सियासत नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों को उनका हक दिलाना चाहते हैं। भाई राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। ऐसे में अगर राहुल सही मायनों में किसानों की समस्या का हल चाहते तो वो इसके लिए यूपी की मुख्यमंत्री मायावती से मिलने का समय मांगते और किसानों के साथ लखनऊ जाते। लेकिन राहुल कहां गए, प्रधानमंत्री मनमोहन के पास। अब प्रधानमंत्री ने यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी है। अब अगर राहुल को प्रधानमंत्री से न्याय नहीं मिला, फिर क्या करेंगे वो, क्या यूएनओ चले जाएंगे।
मुख्यमंत्री मायावती को भी ये कहने का मौका मिल गया कि राहुल ड्रामेबाजी कर रहे हैं। सच तो ये हैं कि अब लगने भी लगा है कि वो ड्रामेबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन की हालत ये हो गई है कि यूपी कांग्रेस के अधिवेशन में भी वो पूरे समय तक भट्टा परसौल गांव की मुश्किलों पर चर्चा करने तक सिमट कर रह गए। अरे कांग्रेसी मित्रों, यूपी में हाशिए पर हो, कुछ ठोस पहल करो, जिससे विधानसभा में आपकी संख्या कुछ सम्मानजनक हो जाए। पूरे दिन इस अधिवेशन में इतनी झूठ और फरेब की बातें हुई कि भगवान को भी खफा हो गए। इसलिए दिन में तो पांडाल में आग लगी और रात में ऐसा आंधी तूफान आया कि पांडाल ही उड़ गया, और दो दिन के अधिवेशन को एक दिन में समेटना पड़ गया।
राहुल के चंपुओं को एक बात और समझ में आनी चाहिए कि जब वो सरकार पर आरोप लगाते हैं कि अगड़ों के साथ मारपीट की गई, किसानों को जिंदा जलाया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई, तो मायावती के मतदाता और संगठित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि बहन जी जब कानून का डंडा चलाती हैं तो ये नेता लोग बेवजह चीखते हैं। ऐसे में अगर मैं ये कहूं कि राहुल कांग्रेस के लिए कम मायावती के लिए ज्यादा काम कर रहे है तो गलत नहीं है। बहरहाल राहुल जिस तरह के आरोप लगाया करते हैं वो किसी पार्टी के ब्लाक स्तर का नेता लगाए तो बात समझ में आती है, राहुल के मुंह से तो कत्तई अच्छी नहीं लगती।
राहुल ने भट्टा परसौल के मामले में जो कुछ भी किया उससे वरुण गांधी की याद आ गई। वरुण ने अल्पसंख्यकों को लेकर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था उससे उनकी न सिर्फ थू थू हुई, बल्कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा। अब राहुल गांधी को ले लीजिए, पहले गांव वालों के बीच में उन्होंने कहा कि उन्हें तो भारतीय होने पर ही शर्म आ रही है, और अब जिंदा जलाने और बलात्कार की जो बातें उन्होंने की उसे तो भट्टा गांव के लोग ही सही नहीं मानते। लगता है कि इन दोनों गांधियों को जुबान फिसलने की बीमारी है।
चलते चलते..
मेरे कहने का तरीका गलत हो सकता है, पर आप वो ही समझें जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। कांग्रेस में चमचागिरी की हालत ये हो गई है कि पार्टी के एक ठीक ठाक नेता ने बातचीत में मुझसे कहा कि मैं राहुल गांधी का बायां हाथ बनना चाहता हूं। मैं परेशान कि लोग तो दाहिना हाथ बनने की बात करते हैं, ये बायां क्यों। मुझसे रहा नहीं गया और मैने पूछ लिया.. भाई आप बाया हाथ क्यों बनना चाहते हैं। उन्होंने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि श्रीवास्तव जी बाएं हाथ की पहुंच कहां कहां होती है, आप नहीं जानते। खैर सियासत है..कुछ भी संभव है।