This is default featured slide 1 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 2 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 3 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 4 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

This is default featured slide 5 title

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipisicing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation test link ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat

Thursday, May 19, 2011

इस गांधी की जुबान फिसलती है !

mahendra srivastava
Delhi
वैसे तो राहुल गांधी पर बात करने से ज्यादा जरूरी और मुद्दे भी हैं, जिस पर लिखने की इच्छा हो रही थी, और इन मसलों से लोग सीधे जुड़े भी हैं। मेरा हमेशा से ये मानना भी रहा है कि ब्लाग सिर्फ लिखने के लिए ना लिखूं, बल्कि यहां मैं अपने सामाजिक दायित्वों को भी ईमानदारी से पूरा करुं। 
आम धारणा है कि मीडिया वाले कुछ भी लिख सकते हैं, कुछ भी बोल सकते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मीडिया की लक्ष्मण रेखा का अंदाजा आप मीडिया में रहकर ही लगा सकते हैं। पहले अखबारों में रिपोर्टर खबरें लिखते थे और सब एडीटर उस पर हैडिंग लगाकर खबरों को प्रकाशित कर देते थे, अब हालात बदल गए हैं। रिपोर्टर को सुबह हैडिंग थमा दी जाती है और शाम को हैडिंग के अनुरूप खबर लिखनी होती है। इलैक्ट्रानिक मीडिया की बंदिशे तो कुछ और भी ज्यादा है। वैसे तो यहां खबरों से ही कुछ लेना देना नहीं है। टीवी में वही दिखता है, जो बिकता है। इलैक्ट्रानिक मीडिया में राहुल दिख रहे हैं, जाहिर है इस समय वो बिक रहे हैं। बिक रहे हैं कि आशय कुछ और नहीं बल्कि ये कि उनके बारे में लोग रिपोर्ट देखना चाहते हैं। बस इसीलिए मैं भी मजबूर हुआ और सोचा चलो आज फिर एक घंटा खराब कर लेते हैं राहुल के नाम पर।
दरअसल राहुल के चंपुओं की नींद उड़ी रहती है, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी है कि राहुल को बड़ा बनाने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहिए। इनके करीबियों को लगा कि दिल्ली से सटे गांव भट्टा परसौल में किसान इस समय आग बबूला हैं, यहां राहुल को फिट किया जा सकता है। बस योजना बनी कि भट्टा गांव जाना है, एसपीजी ने चोर रास्ते का मुआयना किया और अगले दिन राहुल को बाइक से लेकर गांव पहुंच गए। इधर चंपुओं ने मीडिया में खबर उड़ाई कि राहुल यूपी पुलिस की आंख में धूल झोंक कर गांव पहुंचे। खैर ये बात सही है कि और दलों के नेता वहां नहीं पहुंच पाए जबकि राहुल पहुंच गए।
आइये अब मुद्दे की बात करते हैं, राहुल कहते हैं कि हम इस मसले पर सियासत नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों को उनका हक दिलाना चाहते हैं। भाई राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। ऐसे में अगर राहुल सही मायनों में किसानों की समस्या का हल चाहते तो वो इसके लिए यूपी की मुख्यमंत्री मायावती से मिलने का समय मांगते और किसानों के साथ लखनऊ जाते। लेकिन राहुल कहां गए, प्रधानमंत्री मनमोहन के पास। अब प्रधानमंत्री ने यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी है। अब अगर राहुल को प्रधानमंत्री से न्याय नहीं मिला, फिर क्या करेंगे वो, क्या यूएनओ चले जाएंगे।
चलिए राहुल गांधी प्रधानमंत्री से मिल लिए अच्छी बात थी, लेकिन उन्हें मीडिया के सामने किसने कर दिया। जब उन्हें ये नहीं पता कि मीडिया से कितनी और क्या बात करनी है तो फिर उन्हें कैमरे के सामने क्यों लाया गया। ये बात मैं आज तक नहीं समझ पाया। राहुल ने कैमरे पर कहा कि भट्टा परसौल गांव में किसानों को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। ये दोनों बातें उतनी ही गलत हैं, जैसे मैं ये कहूं कि देश के प्रधानमंत्री राहुल गांधी हैं। फिर भी राहुल और उनके चंपू नेता जब कहते हैं, इस मुद्दे पर वो राजनीति नहीं किसानों को न्याय दिलाना चाहते हैं, तो हंसी आती है। अब हालत ये है कि कांग्रेस के बडे नेताओं को डैमेज कंट्रोल के लिए आगे आना पड़ा है।
मुख्यमंत्री मायावती को भी ये कहने का मौका मिल गया कि राहुल ड्रामेबाजी कर रहे हैं। सच तो ये हैं कि अब लगने भी लगा है कि वो ड्रामेबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन की हालत ये हो गई है कि यूपी कांग्रेस के अधिवेशन में भी वो पूरे समय तक भट्टा परसौल गांव की मुश्किलों पर चर्चा करने तक सिमट कर रह गए। अरे कांग्रेसी मित्रों, यूपी में हाशिए पर हो, कुछ ठोस पहल करो, जिससे विधानसभा में आपकी संख्या कुछ सम्मानजनक हो जाए। पूरे दिन इस अधिवेशन में इतनी झूठ और फरेब की बातें हुई कि भगवान को भी खफा हो गए। इसलिए दिन में तो पांडाल में आग लगी और रात में ऐसा आंधी तूफान आया कि पांडाल ही उड़ गया, और दो दिन के अधिवेशन को एक दिन में समेटना पड़ गया।

राहुल के चंपुओं को एक बात और समझ में आनी चाहिए कि जब वो सरकार पर आरोप लगाते हैं कि अगड़ों के साथ मारपीट की गई, किसानों को जिंदा जलाया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई, तो मायावती के मतदाता और संगठित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि बहन जी जब कानून का डंडा चलाती हैं तो ये नेता लोग बेवजह चीखते हैं। ऐसे में अगर मैं ये कहूं कि राहुल कांग्रेस के लिए कम मायावती के लिए ज्यादा काम कर रहे है तो गलत नहीं है। बहरहाल राहुल जिस तरह के आरोप लगाया करते हैं वो किसी पार्टी के ब्लाक स्तर का नेता लगाए तो बात समझ में आती है, राहुल के मुंह से तो कत्तई अच्छी नहीं लगती।
राहुल ने भट्टा परसौल के मामले में जो कुछ भी किया उससे वरुण गांधी की याद आ गई। वरुण ने अल्पसंख्यकों को लेकर जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था उससे उनकी न सिर्फ थू थू हुई, बल्कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा। अब राहुल गांधी को ले लीजिए, पहले गांव वालों के बीच में उन्होंने कहा कि उन्हें तो भारतीय होने पर ही शर्म आ रही है, और अब जिंदा जलाने और बलात्कार की जो बातें उन्होंने की उसे तो भट्टा गांव के लोग ही सही नहीं मानते। लगता है कि इन दोनों गांधियों को जुबान फिसलने की बीमारी है।

चलते चलते..
मेरे कहने का तरीका गलत हो सकता है, पर आप वो ही समझें जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। कांग्रेस में चमचागिरी की हालत ये हो गई है कि पार्टी के एक ठीक ठाक नेता ने बातचीत में मुझसे कहा कि मैं राहुल गांधी का बायां हाथ बनना चाहता हूं। मैं परेशान कि लोग तो दाहिना हाथ बनने की बात करते हैं, ये बायां क्यों। मुझसे रहा नहीं गया और मैने पूछ लिया.. भाई आप बाया हाथ क्यों बनना चाहते हैं। उन्होंने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि श्रीवास्तव जी बाएं हाथ की पहुंच कहां कहां होती है, आप नहीं जानते। खैर सियासत है..कुछ भी संभव है।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------