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Monday, May 23, 2011

भट्टा पारसोल में राहुल गाँधी तो हार गये थे

आलोक कुमार 
सबकी खबर
भट्टा पारसोल  में राहुल गाँधी के अनशन के मामले में जो कुछ हुआ वह बिलकुल वैसा नही था जैसा की दिखाई दिया बल्कि वहां प्लान कुछ और ही था. जो फ़ैल हो गया. चालें  दोनों और से चली गयी. दूर से देखो तो लगता है की राहुल बाबा जीत गये, लेकिन थोडा गौर से देखो तो पता चलेगा की राहुल गाँधी तो हार गये थे.  अथ श्री बैक ग्राउंड कथा का शुभारम्भ करने से पहले कृपया इतिहास पर भी नजर डालिए.
किसान राजनीति को कांग्रेस विरोध की  लौ से चौधरी  चरण सिंह ने जलाया था । कांग्रेस विरोध की लौ से जला यह मशाल यूपी में अपातकाल के दौर से अबतक जला हुआ है।  इस मशाल का इतिहास काफी रोचक है । चौधरी चरण सिंह ने अमेरिका से पढकर आए  इंजीनियर पुत्र अजीत सिंह  को यह मशाल थमा दिया था । अजीत सिंह इस मशाल के सहारे काफी वक्त तक जिंदा रहे और कांग्रेस के चहेते बनकर भी कांग्रेस विरोधियों से गलबहियां करते रहे । कभी कोई विरोध नहीं हुआ ।
राजनीति में लगातार दाएं बाएं करने के बावजूद किसान नेता के अपनी वजूद को लेकर अजीत सिंह सजग रहते हैं। लगातार जताने से नहीं थकते कि किसान राजनीति की असली मशाल उनके हाथ में ही है। चरण सिंह के राजनीतिक वारिस  मुलायम सिंह यादव को यह बात आजतक रास नहीं आती । आपसी बातचीत में चरण सिंह को परिवारवाद के दंश से हुए दर्द को बताने से नहीं थकते कि नेता ने शिष्य के हाथ में मशाल थमाने का बजाय पुत्र को बिरासत में सौंप दिया । अजीत सिंह और मुलायम सिंह के बीच  किसानों का असली नेता बनने की निजी लडाई हमेशा चलती रहती । हालांकि पिछली बार निजी निवेशकों के लिए  बनी यूपी की सरकार को चलाने के बाद मुलायम सिंह यादव की  किसान नेता की कुर्सी पर दावेदारी कम हुई है ।
किसान राजनीति के बडे फायदे हैं। इसे यूपी में अगली पीढी के बीजेपी नेता  राजनाथ सिंह ने बखूबी समझा । काफी लड झगडकर वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री की कुर्सी हासिल की । कृषि मंत्री बनकर राजनाथ सिंह जातिवादी राजनीति से उबरकर किसान नेता बनने की होड में शामिल हो गए। इससे राजनाथ सिंह का आत्मविश्वास इस कदर बढा कि उन्होंने राजनीति की पहलवानी में कल्याण सिंह जैसों को  धोबिया पाट देकर चित कर दिया । किसान नेता की छवि का ही नतीजा है कि पूर्वांचल का होने के बावजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद सीट से सांसद बने हैं।  बनने की चाहत भूला दी थी। का तमगा मिल गया हैं।
यूपी में कांग्रेस विरोध की राजनीति में खडे किसानों के तीन राजनीतिक पहलवानों अजीत सिंह,मुलायम सिंह यादव और राजनाथ सिंह का जिक्र इसलिए किया कि शनिवार को ग्रेटर नोएडा में किसान-पुलिस मुठभेड की आंच पर सबसे पहले इन तीनों ने ही रोटी सेकने की कोशिश की । आगामी चुनाव में पूर्वांचल तक आधार के विस्तार में लगे अजीत सिंह शनिवार की वारदात की खबर लगते ही पुत्र जयंत चौधरी के साथ नोएडा आ धमके। प्रेस के आगे तस्वीर खिंचवाई कि पुलिस उनको किसानों तक पहुंचने नहीं दे रही। अजीत सिंह के पीछे पीछे मुलायम सिंह के पहलवान भाई शिवपाल सिंह का कारवां नोएडा पहुचा । गौरतलब है कि सपा के पिछले हल्ला बोल में मायावती की सख्ती से घबराकर मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव काफी सम्हलकर किसी विरोध प्रदर्शन में सामने आ रहे हैं। बहरहाल शिवपाल  सिंह ने अपने पुराने आदेशपाल पुलिस वालों से आग्रह किया कि उनको थोडा अंदर तक जाने दिया जाए ताकि मीडिया वाले अजीत सिंह बेहतर उनके विरोध की तस्वीर बना कर दिखा पाएं । राजनाथ सिंह के साथ काफी सोफेस्टिकेटेड अंदाज में पहुंचे बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पुलिस के गुस्से को बेहतर समझा और प्रतीकात्मक विरोध से काम चला लिया । मायावती की सख्ती के आगे किसी नेता की कुछ ना चली और प्रशासन पर गोली पत्थर चलाने की जुर्म में मार खाए ग्रेटर नोएडा के किसान तीन दिन तक कलपते सिसकते रहे । मीडिया के सिवा किसी नेता ने उनकी सुध नहीं ली ।
फिर क्या था भट्ठा परसौल की उपेक्षा की कहानी कांग्रेस के रणनीतिकारों तक पहुंची । बरसों से रुठे किसानों को पटाने का ठोस प्लान बनाया गया । मौके के वक्त की ताक में बैठे उत्साही राहुल गांधी को संवेदना झलकाने का प्लान पसंद आया । कृपाचार्य दिग्विजय सिंह को बुलाया गया । रीता बहुगुणा को ग्रेटर नोएडा के कांग्रेस यूनिट के कार्यकर्ताओं से संपर्क करने को कहा गया । मंगलवार की देर रात तक पुलिस छावनी बनी भट्ठा  परसौल गांव को भेदने का प्लान बना लिया गया। प्लान के मुताबिक युवराज राहुल गांधी को परसौल गांव पहुंचते ही धारा 144 के उल्लंघन के जुर्म में गिरफ्तार करवाना और दोपहर की घूप के चढते ही जमानत पर रिहा करवा लेना था । लेकिन परसौल पहुंचते ही मायावती के रणनीतिकारों ने कांग्रेस के प्लान को ध्वस्त कर दिया। जैसे ही राहुल गांघी के चोरी छिपे गांव में प्रवेश की खबर लगी  एलान कर दिया गया कि ग्रेटर नोएडा में धारा 144 हटा ली गई है । मतलब साफ था कि राहुल गांधी को ग्रेटर नोएडा की गर्मी में दिनभर के लिए झुलसता छोड दिया जाए । परेशान करने के लिए राहुल गांधी को ग्रेटर नोएडा में ही रात बीताने की स्थिति पैदा कर दी गई थी । लेकिन उपरी हस्तक्षेप से बात सुधारी गई और राहुल को गिरफ्तार कर परसौल के 42 डिग्री सेंटीग्रेट की बीच आंदोलन कर रहे तमाम बडे नेताओं को पुलिस हिरासत में लेकर ग्रेटर नोएडा से बाहर निकाल लिया गया ।
यह देख समझकर कहना गलत नहीं होगा राजनीति गजब की बला है । यहां सब कुछ वोट के इर्द गिर्द घुमता रहता है । वोट का वक्त नहीं है तो सुध लेने की जरूरत नहीं। वक्त आने का संयम से इंतजार कीजिए । राहुल गांधी ने भट्ठा परसौल  जाकर डंका पीटकर बता दिया है कि यूपी में वक्त आ गया है। साल भर बाद चुनाव है इसलिए राजनीति जग रही है । किसानों की सुध ली जा रही है। भूख हडताल की तैयारी है। धरना प्रदर्शन का सिलसिला तेज किया जा रहा है । जान जोखिम में डालकर भी राजनेता दिक्कतों के समाधान के लिए मुखर किसानों के इर्द गिर्द मंडराते नजर आ रहै हैं।
ग्रेटर नौएडा आकर राजनीति के वक्त के साथ जागने और फिर सो जाने के इस रंग को बखूबी समझा जा सकता है। ताज और यमुना एक्सप्रेस वे के लिए भूमि अधिग्रहण का मामला कोई नया नहीं है। इसे लेकर मची घांघली कोई नई बात नहीं है । किसान आंदोलन भी पहली बार नहीं हुआ है। बल्कि छह महीने पहले ही किसान आंदोलन में अजीत सिंह ने जब बाजी मारनी शुरू की तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने साथ मिलकर उस आंदोलन की हवा निकल दी थी। मुख्यमंत्री मायावती ने राहत की सांस ली थी। तब मायावती के गुर्गों ने जातिगत राजनीति के सहारे आंदोलन में सेंघ लगाकर खूब मजा लिया था। उस बार भी बीजेपी ने अपना रोल लच्छेदार शब्दों के सहारे  जमीन पर उतरने के बजाय  शानदार  बयान से किसान आंदोलन को सर्मथन दिया था । भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मुखर किसान थक हार कर आंदोलन समेटने को मजबूर हुए थे । मायावती प्रशासन को इसबार भी किसान आंदोलन से कुछ नही बिगडने का भरोसा है। वैसे भी इस तरह का मुगालते भरा भरोसा सत्ता में बैठे दल को हमेशा से रहा है।
अब मायावती एकबार फिर से मुलायम के खिलाफ राहुल गांधी । राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी। बीजेपी के खिलाफ अजित सिंह और अजित सिंह के खिलाफ पूर्वांचल में मोर्चा खोले बैठे दलों को भडका कर किसानों के वोट का बंदरबांट करवा देने की राजनीति में लगी हैं । पिछले किसान आंदोलन को मायावती के गुर्गों ने यह कहकर फोडा था कि अगडी जाति के किसान मायावती सरकार के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। मायावती के काम अमर सिंह का वो टेप भी आएगा जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पांच साल बाद सार्वजनिक हुआ है । टेप में एक्सप्रेस वे के ठेकेदार और किसान विरोध कांड के खलनायक जयप्रकाश गौड ये बताने से नहीं चूक रहे कि पिछली समाजवादी पार्टी की सरकार से उनका दोस्ताना रिश्ता था । इसके अलावा अगर ठीक से कांग्रेस और बीजेपी के राजनीतिक फंड मुहैया कराने वालों की सूची देखेंगे तो आपको पता लग जाएगा कि ये राजनीतिक दल चाहकर भी गौड कंस्ट्रकशन जैसों का एक सीमा से ज्यादा विरोध नहीं कर सकते हैं । मतलब साफ है सब कुछ मैनेज है। ड्रामा है  इसलिए हिंदुस्तानी होने पर शर्माने की बात करने वाले राहुल गांधी की संवेदवा पर भी सवाल उठना लाजिमी है।
यह लेख सबकी खबर.कॉम से लिया गया है. एवं इंट्रो अपनी और से सम्पादक के द्वारा जोड़ा गया है.